मैंने अपने मासूमियत से
अपनी ज़िन्दगी में किया था दोस्ती
कभी मेरी ज़िन्दगी में थे वो दिन
जब हम दोनों साथ में खाते
मैंने ऐसे दोस्ती के रिश्तों को
मिनटों में बर्बाद किया
गलती थी छोटी सी उसकी
की उसने ही मुझे बर्बाद कह दिया
आज वो ऐसे दिन न रहे
की मई उससे बोल भी दूँ
बल्कि अब तो इतना दुआ
की उसकी तरफ ऑंखें मुड़ती नहीं
मोड़ने के भी कोशिश ने
ऑंखें खुद ही पलट जाती है
ये थी मेरी दस साल की थी मेरी ये दोस्ती
पलों पल में मैंने अपनी ज़िन्दगी सवारा
त्याग दिया इस दोस्ती को
क्यों की मसाल बुझ गया मेरी दोस्ती का ॥॥
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