जवानी के कुछ चंद लम्हे
जो आज मेरी कविता के अल्फाज है
यु तो कहे अगर हम,अपने कुछ लब्ज यहाँ पर
जो लोग समझे तो दर्द है
जो न समझे तो समुन्दर है
हम तो अपनी जवानी न जी सके
बस कुछ चंद लम्हो ने बिगाड़ दिया
हमें तो याद है पर कुछ तो भूल गए
क्या बताये हम ज़माने को यहाँ
ये जहा था वही आज भी टिका है
कुछ तो गलतियां हमारी है यारों
कैसे कट गयी मेरी जवानी के चोबीस साल
मुझे तो कुछ पता न चला यहाँ
जिसने पैदा किया है उसने तो
हर एक रात-और दिन गिने है
हम तो क्या है शायद पता नहीं
मै क्यों आया यहाँ पर
शायद मेरा भी कुछ कर्तब्य होगा
शायद मेरा भी कोई हक़ होगा
न पता मुझे ज़माने वालों
जरा हमें पता बता दो ज़माने वालों ॥॥॥
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