ऐ ज़िंदगी तू इतनी खुद्दार क्यों है
ऐ ज़िन्दगी तू इतनी बेजान क्यों है
न कुछ गिला है न कोई है शिकवा
बस ऐ ज़िन्दगी एक ही है शिकायत
दिए है जो गम तूने जवानी में
मत दोहरा अब तू उसे यहाँ
ऐ ज़िन्दगी तुझसे कितनी शिकायत है
तूने तो कभी मुझे देखा भी नहीं
इतना गम मुझे देकर भी तूने
खुद अनजान बन जाती है
ऐ ज़िन्दगी जो तूने दिया है गम मुझे
बस जी चूका हु तेरे सहारे
अनजान हु मै तेरी असलियत से
ऐ ज़िन्दगी मुझमे तो इतनी काबिलियत है
की तुझे सर रखा वार्ना तो लोग जान गवा देते है
तूने मुझे इसके काबिल रखा इसका सुक्रिया
ऐ ज़िन्दगी कैसे करू तेरा शुक्रगुजार
कैसे कहु सलाम तुझे ऐ ज़िन्दगी
दिया है जो जवानी में गम
मै कैसे भूल जाऊ ऐ ज़िन्दगी ॥॥॥
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