दोस्त से बिछुड़ के थोड़ा
थोड़ा मेरे दिल पूछो
शायद दोस्ती का इतिहास
इम्तियार में कही छिपा होगा
तुमसे ही मेरी दोस्ती,इम्तियार कही ऐसा होगा
देखो जरा मेरे दिल में कही दोस्ती आलम बुझा होगा
मेरे दोस्त तुमसे बिछड़ना,मेरे जुदाई के बराबर
सोचा भी न था मैंने ऐसा
ऐसा भी मुझे कही
दुनिया में मेरा कही दोस्त मिलेगा
शायद मुखातिब होते है सब
लेकिन मेरे दोस्त तुमसे कही
जुदाई सहना न होगा
मै तो अपनी ज़िन्दगी का,एक बेसहारा मर्तबा हु
मेरे दोस्त तुम ही मेरे दोस्ती का
दुनिया में कही तू ही हौसला होगा
न था खुद को यकींन
की खुदा ही कही करेगा
तुझसे इतना दूर ॥॥
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