न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
जाने क्यों लोग ही बदल जाते है
पर हा मुझे याद् है इस ज़िन्दगी में
सुबह तो धुप तो निकलती है
लेकिन क्यों शाम को चली जाती है
न रुक्ख बदलता है न दीवानापन
पल पल में क्यों लोग बदल जाते है
बातों पर यदि मेरे यकीं नहीं होता
तो मैदान में उतर कर देख लो
सड़क पर चलने को तो
बहुत लोग चला करते है लेकिन
भीड़ में आगे कौन निकलता है
ये भीड़ ही बता सकती है
जाने क्या लिखा होता है नशीब में
जो भीड़ में ही कुचल कर मर जाते है
न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
बताओ क्यों जेनुअरी में गर्मी नहीं पड़ती
मई में ठंडी नहीं पड़ती
न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
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