मै
परदेशी परवाना हु
फिर भी हर और से मारा हु
घर तो है पर रहने का ठिकाना नहीं
चलता हु लेकिन मंजिल नहीं
खुद से हारा मै बेगाना हु
फिर भी मै खुदा का रखवाला हु
क्या हु मुझे पता कुछ भी नहीं
लेकिन चला जिधर भी हु
उधर अपना सिगार है
हम है परदेशी रखवाले
भारत माँ के हम प्यारे है
छोटी सी जिंदगी बीड़ी की तरह
पैसा ही पैसा हो तो सिगरेट की तरह
राख बनकर रह जाती है
धुआँ बनकर रोग दे जाती है
हम परदेशी बन्दे है
हम ही इस प्रदेश की शान है ॥॥
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