क्या कुछ गम है
जो अब तक छुपाये बैठे हो
कह दो न इनमे,क्यों मुस्कराये से तुम बैठे हो
शायद अब यह चाह
मेरी अब यह पसंद बन गयी है
कवि न होते हुए , अब मै कविवर बन गया हु
क्या है दिल में,दिल से यही एक आवाज बन गयी
अब क्या कहु मै , अब तू मेरी एक चाह बन गयी
शायद कुछ गम दिल में,अभी भी खोये हुए है
जो जन्नत से है,पर मन्नत भी अब उन्ही से है
अब यहाँ का कहा,अब जाहिर कही पर होगा
क्या कुछ गम है,जो हम अब तक दबाये बैठे है
शायद कंटक से घेर पड़ा ,अब सो ये तेरा
कंटक से ये "कविवर राहुल दीवाना" बना ॥॥॥
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