इस धरती पर कितन फूल खिले
खिल कर भी मुरझा दिए
न आपमें न हमने, समझ ही न थी ऐसी
क्या क्या है कह डाला,दुनिया के उन
फूलों को
शायद समां दिल है,समझाऊ कैसे इस दुनिया
को
जिसने उन फूलों को है मुरझाये
हम्मे थी नादानी क्या
जो रात्रि में भी लिख रहा हु
लेकिन दुनिया वालों को हम
उन मुरझाये फूलों को नमी दे देना है
शायद कहीं के सहारे
पर हमारे ही बनते है बेसहारे,हमने न
था सोचा
जो फूल बने है वो मुरझाये
शायद जज्बा अगर दिल में होता
न आती बुढ़ापा न आती जलापा
इस धरती पर कितने फूल बने
ब्रम्हचर्य को है जीता जिन्होंने
मंजिल कोई रोका न है खुदा ने
जब इस धरती पर आती ये कली है
तो हमको खींच लेना,होता इस कली का तजुर्बा है
इस धरती पर कितने फूल खिले ॥॥
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