क्यों सो जाऊ क्यों सो जाऊ
चंदा अभी भी सोया नहीं
चांदनी संग जग सकता है
तारे संग ही सो सकता है
क्यों सो जाऊ क्यों सो जाऊ
जब कविवर की कविता सोई नहीं
चंदा अभी भी जग सकता है
आसमान में खिल सकता है
धरती पर भी वोह छा सकता है
क्यों सो जाऊ क्यों सो जाऊ
क्यों की कविवर की कविता तुमने पढ़ी नहीं॥
चंदा अभी भी चांदनी संग डूब रहा है
राहुल भी कविता लिख रहा है
क्यों सो जाऊ क्यों सो जाऊ ॥
इतना ज्यादा भी तो सोते है
आंख खुले तो सूरज बाबा आते है
इतना उतना करके याद किये हो
पर बोली मर बर्बाद किये हो ॥
याद कर के सब पास हुए है
बोली सुन कर हम बर्बाद हुए है
क्यों सो जाऊ क्यों सो जाऊ,चंदा अभी भी सोया नहीं॥॥॥
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