जिन्दगी को पतंग न बनने दो ,डोर किसी और को थमानी पडेगी।
खुले आसमान में उड़ाने की ख़्वाहिश,किसी और के दिल में जगानी पड़ेगी।।
होंगे हजारों काटने को बेताब ,खेल बनकर रह जाएगी जिन्दगी।
एक डोर कटते ही जमीन पर,आ जाएगी ये जिंदगी।।
डोर थामने वाला भी खेल की हारी बाजी समझ कर भूल जाएगा।
दूसरी पतंग थामकर नयी बाजी खेलने निकल जायेगा।।
हर कटी पतंग की जिंदगी में दुबारा आसमान नहीं होता।
क्योंकि अपनी शर्तों पर जीना आसान नहीं होता।।
पतंग नहीं आजाद परिंदा बनो ,
ख्वाब देखो और उड़ान भरो।
क्योंकि परिंदो को गिराना आसान नहीं होता।
उनकी उड़ानों का कोई पहरेदार नहीं होता।।
सपने भी अपने आसमान भी अपना।
होगा एक दिन ये सारा जहाँ भी अपना।।
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