ये असफताए भी क्या सिख देती है
न जीने देती है न मरने देती है
दिल में एक बनकर ही छिपी रहती है
सिर्फ यादों का झोका दिमाग पर देती है
कही हवा में भी ये उड़ान भर्ती है
तूफा अभी अलग चले
हवाएं भी घनघोर घटा में चले
तो शायद असफताओं पर कही
कोशिशों का मरहम लगाती है
शायद हर दराज हर कोने में कही
दर्द का इम्तियार हुआ करता है
ये असफताए भी क्या सिख देती है
जीने से तो बेहतर यही होता
अगर कोशिश का न मिला होता
मलहम कही तो मरहम गए होते
हर हवा के झोके ने मुझे
परेशान करके रुला ही दिया
शायद न दर्द रहा न क़द्र रहा
अब मेरे इस अरमान का
बस मुझे तो ये कवितायेँ रोने से बचा लेती है ॥॥
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