सुबह की हवाएं मन को,मेरे सपने दे जाती है ,
लह - लहती सरयू का पानी, कल कल की है गूंज इनमे
है वसुंधरा को स्वच्छ बनाती , मानव जीवन धन्य बनाती
सुबह की हवाएं मुझे,मेरी
फिजाये बदल देती
ये निकलते ये हलके, इस सूरज का निकलना
हो जाता है मस्ती गुण मुझमे,
पल पर बैठ देख रहा हु , जल में डुबकी लेती मछली को
पर जब हो इसमें कीड़ों का गिरना,है परेशान वो हो जाते
पर आनंदित होता है दिल मेरा, परिश्रम कर जब ये बाहर आते
पेड़ो पर हो चिड़ियों की गूंज, तब मस्ताने मौसम को
अब से तुम अपना कहना,है कोयल जो गूंज रही
रस भर लो वाणी में ,है कुछ तरंगे बाकि
खो जाओ इस रास में,सुबह की हवाएं मन को
मेरे सपने दे जाती है ॥॥
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