ज़िन्दगी हर किसी को जीना सीखा देती है
कोई मरहम लगाकर जीना सिख लेता है
कोई मरकर ज़िन्दगी जीना सिख लेता है
ज़िन्दगी के घावों को कोई मरहम लगाता है
कोई मिर्च नमक कोई कुरेद देता है
हर कोई ज़िन्दगी जीना सीखा लेता है
पल पल में बदलती रहती है
ज़िन्दगी का हिस्सा अधूरा रहता है
कैसी होती है ये ज़िन्दगी
हर कोई कैसे कैसे सिख लेता है
कोई झोपड़ में बीतता है ज़िन्दगी
होते हुए भी न करना पड़ता है
फिर न होते हुए भी है कहना पड़ता है
ज़िन्दगी हर कोई जीता है
फिर भी इसे बतला कौन पाता है
क्या होती है ये ज़िन्दगी
कैसे बदल जाती है ये ज़िन्दगी ॥॥
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