बचपन के मेरे वो साथी
जवानी में याद आते है
कभी आँखों में मेरे नमी
कभी वही साथ आते है
बचपन से सोचे सपने
जवानी में याद आते है
फिर भी वो अब
मेरे दिल के बहाने आते है
कभी वो हँसाने मुझे ,कभी वो रुलाने आते है
बचपन से बने साथी जवानी में याद आते है
शायद मुकद्दर का यही एक मकसद था
अब मेरे दोस्त मुझे बुलाने आते है
मेरे खुशियों की मंदिर
मेरे दिल की ये मूरत है
शायद अब मेरे साथी अब जवानी में याद आते है
सभी की यादों को सबसे ज्यादा याद आता है
पर अब तन्हाई में ही मुझे अब चैन आता है ॥॥ ॐ
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