*॥ हर काम ईमानदारी और रुचि से करें॥*
*जो भी काम करो, उसे "आदर्श," "स्वच्छ," "उत्कृष्ट," "पूरा," "खरा" तथा "शानदार" करो ।* अपनी *"ईमानदारी"* और *"दिलचस्पी"* को पूरी तरह उसमें जोड़ दो, इस प्रकार किए हुए उत्कृष्ट कार्य ही तुम्हारे गौरव का सच्चा प्रतिष्ठापन कर सकने में समर्थ होंगे । अधूरे, अस्त -व्यस्त,फूहड़, निकम्मे, गंदे, नकली, मिलावटी, झूठे और कच्चे काम किसी भी मनुष्य का सबसे बड़ा तिरस्कार हो सकते हैं । *यह बात वही जानेगा, जिसे जीवन-विद्या के तथ्यों का पता होगा ।*
*अपनी आदतों का सुधार, स्वभाव का निर्माण, दृष्टिकोण का परिष्कार करना, जीवन-विद्या का आवश्यक अंग है ।* ओछी आदतें, कमीने स्वभाव और संकीर्ण दृष्टिकोण वाला कोई व्यक्ति सभ्य नहीं गिना जा सकता । उसे किसी का सच्चा प्रेम और गहरा विश्वास प्राप्त नहीं हो सकता । इस अभाव में वह सदा ओछा ही रहेगा, कोई बड़ी सफलता उसे कभी न मिल सकेगी ।
*कहते हैं कि बड़े आदमी सदा चौड़े दिल और ऊँचे दिमाग के होते हैं ।* यहाँ *"शरीर की लंबाई-चौड़ाई"* से मतलब नहीं, वरन *"दृष्टिकोण की ऊँचाई"* से ही अभिप्राय है । जिसे जीवन से प्रेम है, वह अपने आपको सुधारता है, अपने *"दृष्टिकोण को परिष्कृत"* करता है । फलस्वरूप *उसके सोचने और काम करने कें तरीके ऐसे हो जाते हैं, जिनके आधार पर महानता दिन-दिन समीप आती जाती है ।
0 Comments:
Please do not message any spam