12 ghazal
मै आँगन हु तुम मेरे आँगन में तुलसी बन जाना
जहा से पा सकू बिस्तार वोह बिश्राम बन जाना
परीक्षा प्रेम की मै दे दू अगर चुनु जंगल के काटों को मैं
अगर राम मैं बनु तो तुम भी सीता बन जाना
किसी मुकम्मल से मोहब्बत हो गयी ,
मोहब्बत भी क्या करने लायक तो हो ,
आईने जैसे चेहरे से मोहब्बत होती है ,
लेकिन टूटे आईने से मोहब्बत हो ....
क्या ऐसा भी वजिब है .....
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