मेरी जान
मेरी समझ से मेरी जान थोड़ी पागल है
या मैं पागल हु ये समझ न आता है
मुझे नींद न आती है लेकिन वोह चैन से सोती है
अगर वोह मिल जाये तो शायद अब जिंदगी का हर मसला
सुलझ जाये
मगर उन्हें ये कौन समझाए मैं कैसे बताऊ उनको
न जाने कैसी ये चाहत है जो चढ़ गयी है अब उतरती
नहीं
मैंने अपने जीवन में न देखा किसी को इस तरह
कभी औरो को देख कर मैं हस्ता था
आज खुद की भी वही बीमारी है
न मैं सोच कुछ और पाता हु न मैं कर कुछ और पाता
हु
किसी के खातिर जीना मरना सिख लिया मैंने
जवानी कब आयी पता ही न चला मुझे
यह तोह अच्छा हुआ लोगों ने पता कर लिया
वार्ना मैं तो ऐसे ही घूमता रहता
मेरी समझ से मेरी जान थोड़ी पागल है
थोड़ी शर्मीली है थोड़ी नाजुक है वोह !!
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