हर सैर हर मंझार से हो आए है हम
हर मुशाफिर हर मुश्किल से मिल आए है हम
हर पत्थर हर सफर पर चल आए है हम
मुश्किलें हमें झुँझलाती चली गयी
सभलते हुए चले आए हम
सोच तो यही रहे थे हम
क्या है ये दुनिया क्या है ये सफर
आशियाने हटते गए हमारे
मीलों मिल चलते गए हम
सोचते सोचते थक गए जब हम
बस पैसों को समझ लिए हम
हर मंझर बिक गया है यहाँ
पता यही तो नहीं था हमें
क्या हुआ ऐ मुशाफिर
पूछने वाला कोई न मिला हमें
हाथ पकड़ने वाला कोई न मिला हमें
चलाने वाले की तो बात छोड़ो यहाँ
हर सैर हर मंझर से हो आए है हम ॥॥॥
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