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What is Zindagi / Explanation of Life in Hindi

What is Zindagi / Explanation of Life in Hindi

Zindagi

एक पत्थर काटने वाला बड़े प्रेम से अपना काम कर रहा था और पत्थर काट रहा था।

वह अपना काम पूरी ईमानदारी और श्रद्धा से करता।

एक दिन वह राजा के महल में गया। वहां की ठाठ बाट देखकर उसका मन मोहित हो गया।

उसने मन ही मन सोचा काश मैं राजा होता और इतने बड़े महल में रहता।

उसकी इच्छा पूरी हुई और वह राजा बन गया। उसकी छोटी सी झोपड़ी बड़ा राज महल बन गई।

उस राज महल से एक बार जब उसने राजा को एक बड़े रथ पर आते देखा तो उसके मन में आया कि काश मेरे पास भी ऐसा रथ होता।

फिर क्या था!

उसकी यह इच्छा भी पूरी हुई।

एक दिन रथ पर जाते हुए धूप बहुत थी। वह पसीने पसीने हो गया था। उसे लगा कि ऐसे रथ का क्या फायदा जिसमें बैठकर भी उसे पसीना आए। उससे अच्छा तो सूर्य ही है जिसकी किरणें हर किसी को पसीने में भिगा देती हैं। उससे अधिक बलशाली आखिर कौन?

बस फिर क्या था!

वह सूर्य बन गया और अपनी किरणे चारों दिशाओं में फैलाने लगा।

एक बार उसने देखा कड़े बादल पृथ्वी को घेर गए और उसकी किरणें पृथ्वी को छू न सकी।

वह फिर बहुत ज्यादा परेशान हो गया। उसे लगा कि मुझसे बलशाली भी कोई और है जिसने मेरी किरणों को ही रोक दिया!

काश मैं बादल होता!

बस फिर क्या था!

उसकी यह मनोकामना भी पूरी हुई।

वह बादल बन गया।

लेकिन बादल तो वर्षा बनकर झड़ जाते।

भला इनका क्या फायदा?

उसने इच्छा कि काश मैं वर्षा बन जाऊं और वह वर्षा बन गया!

हमेशा बरसता।

किंतु एक बार एक पत्थर पर टकरा गया और वर्षा धरती को छू न सकी।

भला ऐसी बारिश बन कर क्या फायदा जो कि एक पत्थर को भी न चीर सके!

इससे अच्छा तो मैं पत्थर ही बन जाऊं!

और फिर वह एक पत्थर बन गया!

एक दिन उसने एक पत्थर काटने वाले को देखा जो कि बड़े मन से पत्थर काटता। रोज़ी रोटी कमाता। छोटी सी झोपड़ी में रहता और बड़े सम्मान प्रेम पूर्वक जीवन जीता।

जब पत्थर भी कट ही जाता है तो फिर मैं पत्थर काटने वाला ही ठीक हूं!

और उसकी यह इच्छा भी पूर्ण हुई।


ऊपर दी कथा से जुड़े विचार मन में आए, जैसे:

१. जीवन एक गोल चक्कर है। जहां से शुरू करते हैं वह वहीं समाप्त हो जाता है। यह हमारी इच्छाओं के लिए भी सही है और पूरे जीवन के लिए भी।

२. आज इसमें मन रम गया तो यही चाहिए, कल कुछ और दिख गया तो मन उसी से रोमांचित हो जाता है और फिर उसी को पाने की इच्छा में लग जाता है। क्या हमारा जीवन भी कुछ ऐसा ही नहीं? जब बच्चे थे तो इच्छाएं अलग थी। बड़े हुए तो इच्छाएं अलग।

३. संकल्प, मेहनत, दृढ़ निश्चय से लग जाओ तो कुछ नामुमकिन भी नहीं।

४. ज़िन्दगी में जितना बड़ा मुकाम हासिल कर लो आगे उतना ही बड़ा मुकाम दिखने लगता है!

५. ज़िन्दगी की भागती दौड़ में हमेशा ही कुछ पाने की लालसा मन को व्यथित भी करती है और कहीं न कहीं आगे बढ़ाने की, पहुंचाने की, भगाने की प्रेरणा भी उत्पन्न करती है।

६. आवश्यक नहीं है कि किसी भी पाने की लालसा को गलत या सही नजरिए से ही भांपा जाए। जीवन में आगे बढ़ना है तो कुछ तो छूटेगा और कुछ तो मिलेगा। जब जो जहां हैं उस का आनंद लेकर फिर आगे बढ़ना ही होता है, यही जीवन भी है।

७. जीवन के दो रंग हैं। एक बाहरी और एक अंदरूनी। जब तक बाहरी दुनिया आकर्षित करती है तब तक हम वहीं खिंचे रहते हैं।

८. सदियां बीतने पर ही अपने असली दर्शन की लालसा होती है और फिर हम आत्म संतुष्ट हो जाते हैं।

९. ऐसा आवश्यक नहीं है जिसको हम छोटा काम मानते हो वह वाकई में छोटा हो। हो सकता है वही सबसे नामुमकिन कार्य हों। और हम उसी में जुटे हों।

लेकिन आभास कर ही इस सच्चाई तक पहुंचा जाता है।

आवश्यक नहीं जो सच है वह उसी वक्त नजर आ भी जाए और उसी प्रकार ही नजर आ जाए।

१०. ज़िन्दगी अपने एक रूप से दूसरे रूप, फिर दूसरे से तीसरे रूप और अपने अलग-अलग रूप बदलती रहती है।

ज़िन्दगी इसी प्रकार नित्य निरंतर चलती ही रहती है। कई बार हमें खुद भी मालूम नहीं होता है कि हम क्या सोच रहे हैं, और जो सोच रहे हैं क्या वह वाकई में हो जाएगा।

इसी प्रकार नियति से हम सभी बंधे होते हैं।

आते हैं और फिर चले जाते हैं!

बस शायद इतना ही खेल है यह जिंदगी!

Rahul “Nitin”Gupta (BE Civil Engineering ,PMP,MBA Project Management ) is Project Director of this organization he have 8 years of experience in construction industry .He is experts in Site execution, planning , billing department ,Technical advisor .

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